राजस्थान की धरती वीरों और संतों की भूमि मानी जाती है। इन्हीं में से एक हैं लोकदेवता तेजाजी महाराज, जिनकी जयंती भाद्रपद शुक्ल दशमी को मनाई जाती है। इस दिन को आम बोलचाल में तेजा दशमी कहा जाता है।
तेजाजी महाराज कौन थे?
तेजाजी महाराज का जन्म नागौर जिले के खरनाल गांव में हुआ था। वे बचपन से ही वीर, निडर और धर्मपरायण थे। लोककथाओं के अनुसार, तेजाजी ने समाज में न्याय, समानता और सच्चाई की अलख जगाई। सांप के काटे से लोगों को बचाने और वचन निभाने के कारण उन्हें नागों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है।
पूजा-पाठ और परंपरा
- तेजा दशमी के दिन श्रद्धालु तेजाजी के मंदिरों में धोक लगाते हैं।
- नाग-देवता को दूध, जल और पूजा सामग्री चढ़ाई जाती है।
- महिलाएँ अपने परिवार की रक्षा और समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में मेले और भजन संध्याएँ आयोजित होती हैं, जिनमें तेजाजी की वीर गाथाएँ गाई जाती हैं।
लोक आस्था और महत्व
तेजाजी महाराज को “लोकदेवता” इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने सदैव गरीबों और कमजोरों की रक्षा की। माना जाता है कि तेजाजी की पूजा करने से सांप के भय से मुक्ति मिलती है और संतान-सुख की प्राप्ति होती है।
राजस्थान ही नहीं, पूरे देश में आस्था
तेजा दशमी का पर्व केवल राजस्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि मध्यप्रदेश, गुजरात और हरियाणा के कई हिस्सों में भी बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
निष्कर्ष
तेजा दशमी सिर्फ एक धार्मिक त्योहार नहीं बल्कि लोक संस्कृति, आस्था और वीरता की परंपरा का प्रतीक है। यह पर्व हमें वचन निभाने, सच्चाई पर डटे रहने और समाज सेवा की प्रेरणा देता है।
