राजस्थान

राजस्थान: कैडर पुनर्गठन में देरी के खिलाफ न्यायिक कर्मचारियों का अनिश्चितकालीन सामूहिक अवकाश, अदालतों पर ताले का खतरा

जयपुर | राजस्थान की अधीनस्थ अदालतों में कार्यरत 21,000 से अधिक न्यायिक कर्मचारियों ने कैडर पुनर्गठन की मांग को लेकर शुक्रवार, 18 जुलाई से अनिश्चितकालीन सामूहिक अवकाश पर जाने की घोषणा की है। राजस्थान उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने दो साल पहले इस पुनर्गठन को मंजूरी दे दी थी, लेकिन वित्त विभाग की स्वीकृति के अभाव में राज्य सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इस देरी को कर्मचारी अपने हितों पर कुठाराघात बता रहे हैं। राजस्थान न्यायिक कर्मचारी संघ ने चेतावनी दी है कि इस हड़ताल से प्रदेश भर की अधीनस्थ अदालतों में कामकाज ठप हो सकता है, और कई जगहों पर न्यायिक अधिकारियों को स्वयं अदालतों के ताले खोलने पड़ सकते हैं।

कर्मचारियों की मांग और हड़ताल का ऐलान

राजस्थान न्यायिक कर्मचारी संघ के प्रवक्ता योगेश महर्षि ने कहा कि कैडर पुनर्गठन का प्रस्ताव उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने 2023 में राज्य सरकार को भेजा था, लेकिन दो साल बाद भी वित्त विभाग की मंजूरी नहीं मिली है। उन्होंने इसे कर्मचारियों के हितों पर गंभीर चोट बताया और कहा, “21,000 से अधिक कर्मचारी इस अन्याय के खिलाफ एकजुट हैं। हमारी मांगें पूरी होने तक यह अनिश्चितकालीन अवकाश जारी रहेगा।”

जयपुर जिला न्यायालय कर्मचारी संघ के अध्यक्ष नरेंद्र यादव ने बताया कि गुरुवार, 17 जुलाई को सभी जिला अध्यक्षों की आपात बैठक बुलाई गई, जिसमें सर्वसम्मति से शुक्रवार से सामूहिक अवकाश पर जाने का फैसला लिया गया। उन्होंने कहा, “पिछले चार दिनों से हमारे प्रदेश अध्यक्ष सुरेंद्र नारायण जोशी सहित कई पदाधिकारी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर हैं, लेकिन सरकार की ओर से कोई सुनवाई नहीं हो रही। यह कर्मचारियों के धैर्य की परीक्षा है।”

कैडर पुनर्गठन का मुद्दा

कैडर पुनर्गठन का प्रस्ताव अधीनस्थ अदालतों में कार्यरत कर्मचारियों के पदों के पुनर्गठन, वेतन संरचना में सुधार, और सेवा शर्तों को बेहतर करने से संबंधित है। कर्मचारियों का कहना है कि वर्तमान संरचना में कई पद पुराने हो चुके हैं, और नए कार्यभार को देखते हुए पुनर्गठन जरूरी है। उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने इसकी आवश्यकता को स्वीकार करते हुए 2023 में प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, जिसे वित्त विभाग के पास भेजा गया था। हालांकि, वित्त विभाग की ओर से अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है, जिससे कर्मचारियों में नाराजगी बढ़ी है।

अदालतों पर प्रभाव

न्यायिक कर्मचारी संघ के अनुसार, प्रदेश भर में 21,000 से अधिक कर्मचारी इस हड़ताल में शामिल होंगे, जिनमें जयपुर, जोधपुर, श्रीगंगानगर, और अन्य जिलों के कर्मचारी शामिल हैं। इन कर्मचारियों में कोर्ट रीडर, स्टेनोग्राफर, क्लर्क, और अन्य सहायक कर्मचारी शामिल हैं, जो अदालतों के दैनिक कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हड़ताल के कारण फाइलों का प्रबंधन, सुनवाई की तारीखों का निर्धारण, और अन्य प्रशासनिक कार्य प्रभावित होंगे। योगेश महर्षि ने चेतावनी दी कि कई अदालतों में ताले लग सकते हैं, और न्यायिक अधिकारियों को स्वयं कार्यालय खोलने पड़ सकते हैं।

जयपुर के एक वरिष्ठ वकील ने बताया कि कर्मचारियों की अनुपस्थिति से लंबित मामलों की संख्या बढ़ सकती है, जिससे पहले से ही बोझिल न्यायिक प्रणाली पर और दबाव पड़ेगा। उन्होंने सरकार से जल्द से जल्द इस मुद्दे को हल करने की अपील की।

सरकार और प्रशासन की प्रतिक्रिया

राज्य सरकार ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। सूत्रों के अनुसार, वित्त विभाग का कहना है कि कैडर पुनर्गठन के लिए अतिरिक्त बजट आवंटन की आवश्यकता है, जिस पर विचार चल रहा है। हालांकि, कर्मचारी इस देरी को अनुचित मान रहे हैं, क्योंकि उच्च न्यायालय की मंजूरी के बावजूद दो साल से कोई प्रगति नहीं हुई है।

उच्च न्यायालय के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अदालत इस मामले को गंभीरता से ले रही है और सरकार से जल्द कार्रवाई की उम्मीद कर रही है। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों की हड़ताल से न्यायिक कार्य प्रभावित होने की आशंका है, जिसका असर आम जनता पर भी पड़ेगा।

कर्मचारियों का आंदोलन

न्यायिक कर्मचारी संघ ने पिछले कुछ दिनों से अपने आंदोलन को तेज किया है। प्रदेश अध्यक्ष सुरेंद्र नारायण जोशी की अगुवाई में जयपुर में चार दिन से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल चल रही है। कर्मचारियों ने जयपुर, जोधपुर, और श्रीगंगानगर में प्रदर्शन किए, जिसमें सैकड़ों कर्मचारियों ने हिस्सा लिया। श्रीगंगानगर में कर्मचारियों ने जिला कलेक्ट्रेट के सामने धरना दिया, जिसमें सरकार के खिलाफ नारेबाजी की गई।

कर्मचारियों का कहना है कि कैडर पुनर्गठन न केवल उनके वेतन और प्रोन्नति के लिए जरूरी है, बल्कि यह अदालतों की कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने चेतावनी दी कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, वे काम पर वापस नहीं लौटेंगे।

सामाजिक और कानूनी प्रभाव

यह हड़ताल न केवल कर्मचारियों और सरकार के बीच तनाव को दर्शाती है, बल्कि यह राजस्थान की न्यायिक प्रणाली पर भी गहरा प्रभाव डाल सकती है। प्रदेश में पहले से ही लाखों मामले लंबित हैं, और कर्मचारियों की अनुपस्थिति से यह संख्या और बढ़ सकती है। वकीलों और पक्षकारों ने इस स्थिति पर चिंता जताई है, क्योंकि इससे उनकी सुनवाई में देरी हो सकती है।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को इस मामले में तुरंत मध्यस्थता करनी चाहिए। एक विशेषज्ञ ने बताया कि उच्च न्यायालय की मंजूरी के बावजूद वित्त विभाग की देरी प्रशासनिक लापरवाही को दर्शाती है। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार और कर्मचारी संघ के बीच बातचीत के जरिए इस गतिरोध को हल किया जाना चाहिए।

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