राजस्थान हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: CMHO को चिकित्सकों का एपीओ करने का अधिकार नहीं

जयपुर, 31 जुलाई 2025: राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) किसी चिकित्सक को अवेटिंग पोस्टिंग ऑर्डर (एपीओ) नहीं कर सकता। न्यायमूर्ति रेखा बोराणा की एकलपीठ ने इस व्यवस्था को देते हुए जोर देकर कहा कि एपीओ जैसे कार्मिक संबंधी आदेश केवल सक्षम प्राधिकारी द्वारा ही जारी किए जा सकते हैं। यह निर्णय वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. रमेश चंद्र की याचिका पर सुनवाई के बाद सुनाया गया।

मामला कैसे शुरू हुआ?

यह मामला पाली जिले के रानी ब्लॉक स्थित सीएचसी बूसी के इंचार्ज डॉ. रमेश चंद्र से जुड़ा है। डॉ. चंद्र, जो 2013 से चिकित्सा अधिकारी के रूप में सेवा दे रहे हैं और वर्तमान में वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी के तौर पर कार्यरत हैं, को 6 जून 2025 को CMHO, पाली ने अचानक एपीओ कर दिया था। उनका मुख्यालय संयुक्त निदेशक, जोधपुर निर्धारित किया गया। इस कार्रवाई के पीछे एक विवादास्पद घटना का हवाला दिया गया।

विवाद की जड़: महिला का ड्रिप विवाद

सारा विवाद 5 जून 2025 की रात 11 बजे शुरू हुआ, जब एक महिला सीएचसी बूसी पहुंची और खुद को मरीज बताते हुए ब्लड प्रेशर जांचने और ड्रिप लगाने की जिद करने लगी। डॉ. चंद्र ने उसकी जांच की और पाया कि महिला पूरी तरह स्वस्थ है, जिसके आधार पर उन्हें इंजेक्शन या ड्रिप की जरूरत नहीं थी। लेकिन महिला अड़ी रही और डॉक्टर को धमकी देने लगी कि अगर उसकी मांग पूरी नहीं की गई तो उनकी नौकरी खतरे में पड़ जाएगी। उसने खुद को किसी राजनीतिक दल की पूर्व पार्षद होने का दावा भी किया। यह घटना अस्पताल के सीसीटीवी कैमरे में रिकॉर्ड हो गई।

झूठी शिकायत और कार्रवाई

अगले दिन, महिला ने CMHO, पाली के समक्ष ड्रिप न लगाने की शिकायत दर्ज कराई, जिसमें कई तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा गया। इसी आधार पर CMHO ने 6 जून को डॉ. चंद्र के खिलाफ एपीओ का आदेश जारी कर दिया। डॉ. चंद्र ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की, जिसमें उनके अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने तर्क दिया कि यह कार्रवाई नियमों के खिलाफ है।

कोर्ट का फैसला

हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सुनवाई की और CMHO की कार्रवाई को गलत ठहराया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चिकित्सकों के स्थानांतरण या एपीओ जैसे निर्णय केवल अधिकृत अधिकारी ही ले सकते हैं। यह फैसला न केवल डॉ. चंद्र को राहत देता है, बल्कि चिकित्सा विभाग में पारदर्शिता और नियमों के पालन की मांग को भी बल देता है।