राजस्थान में 12वीं की किताब पर सियासी बवाल: कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों पर कई पाठ, PM मोदी का सिर्फ जिक्र, शिक्षा मंत्री ने लगाया प्रतिबंध

जयपुर | राजस्थान के स्कूलों में कक्षा 12वीं की इतिहास की किताब “आजादी के बाद का स्वर्णिम भारत” को लेकर तीखा सियासी विवाद छिड़ गया है। इस किताब में जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और अन्य कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों के योगदान पर विस्तृत अध्याय शामिल हैं, जबकि वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम केवल संक्षेप में उल्लेखित है। इस असंतुलन को लेकर राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने किताब को “कांग्रेसी पोथी” करार देते हुए इसे तत्काल प्रभाव से पाठ्यक्रम से हटाने और स्कूलों में पढ़ाई पर रोक लगाने का आदेश दिया है। हालांकि, शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने बताया कि किताब की 4.90 लाख प्रतियां छप चुकी हैं, जिनमें से 80% छात्रों को वितरित हो चुकी हैं, जिससे प्रतिबंध लागू करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

विवाद का केंद्र: किताब का कंटेंट

  • कांग्रेसी नेताओं पर जोर: किताब में आजादी के बाद के भारत के इतिहास को कवर किया गया है, जिसमें जवाहरलाल नेहरू की नीतियों, इंदिरा गांधी के कार्यकाल और राजीव गांधी के योगदान पर विस्तृत पाठ हैं। इनमें नेहरू का पंचशील सिद्धांत, इंदिरा गांधी का आपातकाल और बैंकों का राष्ट्रीयकरण, और राजीव गांधी के तकनीकी विकास जैसे विषय शामिल हैं।
  • PM मोदी का सीमित उल्लेख: इसके विपरीत, 2014 से देश का नेतृत्व कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का केवल नाममात्र जिक्र है। किताब में उनके कार्यकाल की प्रमुख योजनाओं जैसे डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, या स्वच्छ भारत अभियान पर कोई विस्तृत चर्चा नहीं है, जिसे सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने पक्षपातपूर्ण बताया है।
  • शिक्षा मंत्री का गुस्सा: शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा, *”यह किताब कांग्रेस की तारीफों के पुल बांधती है, लेकिन पिछले 11 वर्षों में देश को वैश्विक मंच पर ले जाने वाले PM मोदी के योगदान को नजरअंदाज करती है। यह छात्रों के दिमाग में एकतरफा इतिहास थोपने की साजिश है।” उन्होंने किताब को पाठ्यक्रम से हटाने और नई किताब तैयार करने की घोषणा की है।

शिक्षा विभाग की दुविधा

शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह किताब राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (RBSE) की मंजूरी के बाद छापी गई थी। किताब की 4.90 लाख प्रतियां तैयार की गईं, जिनमें से 80% से अधिक सरकारी और निजी स्कूलों में वितरित हो चुकी हैं। अब अचानक प्रतिबंध लगाने से निम्नलिखित समस्याएं सामने आ रही हैं:

  • शैक्षिक नुकसान: किताब को हटाने से 12वीं कक्षा के छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो सकती है, क्योंकि नया पाठ्यक्रम तैयार होने और छपने में समय लगेगा।
  • वितरण की समस्या: पहले से बंट चुकी किताबों को वापस लेना और नई किताबें उपलब्ध कराना एक जटिल और महंगा प्रक्रिया होगी।
  • शिक्षकों की चिंता: शिक्षकों का कहना है कि बार-बार पाठ्यक्रम में बदलाव से उनकी तैयारी और शिक्षण प्रक्रिया बाधित होती है।

विपक्ष का पलटवार

कांग्रेस ने इस फैसले को शिक्षा में “RSS का वैचारिक हस्तक्षेप” करार दिया है। राजस्थान कांग्रेस के नेता गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा, “यह किताब भाजपा सरकार की मंजूरी से छपी थी। अब इसे हटाने की बात करना ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ने की कोशिश है। नेहरू, इंदिरा, और राजीव गांधी ने देश के लिए ऐतिहासिक योगदान दिया, जिसे नकारना संभव नहीं है।” डोटासरा ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा सरकार शिक्षा को अपने राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बना रही है और इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश कर रही है।

पहले भी रहा है किताबों पर विवाद

राजस्थान और केंद्र सरकार की पाठ्यपुस्तकों में बदलाव को लेकर पहले भी विवाद हो चुके हैं। कुछ उदाहरण:

  • NCERT में बदलाव: NCERT की किताबों से मुगलकाल, गोधरा कांड, और RSS पर प्रतिबंध जैसे हिस्सों को हटाने पर विपक्ष ने “इतिहास का सांप्रदायिकरण” करने का आरोप लगाया था।
  • गुजरात दंगा विवाद: 2018 में NCERT की किताब में गुजरात दंगों को “मुस्लिम विरोधी” की बजाय केवल “गुजरात दंगा” कहने पर बवाल हुआ था।
  • वसुंधरा राजे कार्यकाल: 2014-2018 में राजस्थान में तत्कालीन भाजपा सरकार ने किताबों से नेहरू और गांधी से संबंधित कुछ हिस्सों को हटाने की कोशिश की थी, जिसे कांग्रेस ने “इतिहास से छेड़छाड़” बताया था।

सामाजिक और शैक्षिक प्रभाव

  • छात्रों पर बोझ: बार-बार पाठ्यक्रम में बदलाव और किताबों पर प्रतिबंध से 12वीं कक्षा के छात्रों की बोर्ड परीक्षा की तैयारी प्रभावित हो रही है। अभिभावकों और शिक्षकों ने सरकार से जल्द समाधान की मांग की है।
  • सियासी तनाव: यह विवाद राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस के बीच पहले से चली आ रही सियासी जंग को और हवा दे रहा है। यह मुद्दा विधानसभा सत्र में भी गूंज सकता है।
  • इतिहास की व्याख्या पर सवाल: किताब में कांग्रेसी नेताओं पर ज्यादा ध्यान और वर्तमान सरकार के योगदान को कमतर दिखाने का मुद्दा शिक्षा में तटस्थता और तथ्यपरकता पर सवाल उठाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इतिहास की किताबें तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए, न कि किसी खास विचारधारा से प्रभावित।

सरकार की अगली रणनीति

शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने घोषणा की है कि किताब की समीक्षा के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित की जाएगी। यह समिति पाठ्यक्रम को “संतुलित और निष्पक्ष” बनाने के लिए सुझाव देगी। साथ ही, नई किताब तैयार होने तक वैकल्पिक सामग्री का उपयोग करने की योजना है। हालांकि, अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि किताबों का वितरण और पढ़ाई पहले ही शुरू हो चुकी है, जिससे तत्काल प्रतिबंध लागू करना मुश्किल होगा।

निष्कर्ष

कक्षा 12वीं की इतिहास की किताब को लेकर राजस्थान में छिड़ा विवाद शिक्षा, इतिहास, और राजनीति के बीच की नाजुक रेखा को उजागर करता है। जहां सरकार इसे कांग्रेसी विचारधारा का प्रचार मान रही है, वहीं विपक्ष इसे ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ का प्रयास बता रहा है। इस बीच, लाखों छात्रों का भविष्य अनिश्चितता के भंवर में फंस गया है। सरकार को चाहिए कि वह समीक्षा प्रक्रिया को पारदर्शी और तेजी से पूरा करे, ताकि छात्रों का शैक्षिक नुकसान न हो और शिक्षा तटस्थता के सिद्धांत पर टिकी रहे।

लेखक: TharToday.com टीम

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