जयपुर | राजस्थान के स्कूलों में कक्षा 12वीं की इतिहास की किताब “आजादी के बाद का स्वर्णिम भारत” को लेकर तीखा सियासी विवाद छिड़ गया है। इस किताब में जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और अन्य कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों के योगदान पर विस्तृत अध्याय शामिल हैं, जबकि वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम केवल संक्षेप में उल्लेखित है। इस असंतुलन को लेकर राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने किताब को “कांग्रेसी पोथी” करार देते हुए इसे तत्काल प्रभाव से पाठ्यक्रम से हटाने और स्कूलों में पढ़ाई पर रोक लगाने का आदेश दिया है। हालांकि, शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने बताया कि किताब की 4.90 लाख प्रतियां छप चुकी हैं, जिनमें से 80% छात्रों को वितरित हो चुकी हैं, जिससे प्रतिबंध लागू करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह किताब राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (RBSE) की मंजूरी के बाद छापी गई थी। किताब की 4.90 लाख प्रतियां तैयार की गईं, जिनमें से 80% से अधिक सरकारी और निजी स्कूलों में वितरित हो चुकी हैं। अब अचानक प्रतिबंध लगाने से निम्नलिखित समस्याएं सामने आ रही हैं:
कांग्रेस ने इस फैसले को शिक्षा में “RSS का वैचारिक हस्तक्षेप” करार दिया है। राजस्थान कांग्रेस के नेता गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा, “यह किताब भाजपा सरकार की मंजूरी से छपी थी। अब इसे हटाने की बात करना ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ने की कोशिश है। नेहरू, इंदिरा, और राजीव गांधी ने देश के लिए ऐतिहासिक योगदान दिया, जिसे नकारना संभव नहीं है।” डोटासरा ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा सरकार शिक्षा को अपने राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बना रही है और इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश कर रही है।
राजस्थान और केंद्र सरकार की पाठ्यपुस्तकों में बदलाव को लेकर पहले भी विवाद हो चुके हैं। कुछ उदाहरण:
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने घोषणा की है कि किताब की समीक्षा के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित की जाएगी। यह समिति पाठ्यक्रम को “संतुलित और निष्पक्ष” बनाने के लिए सुझाव देगी। साथ ही, नई किताब तैयार होने तक वैकल्पिक सामग्री का उपयोग करने की योजना है। हालांकि, अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि किताबों का वितरण और पढ़ाई पहले ही शुरू हो चुकी है, जिससे तत्काल प्रतिबंध लागू करना मुश्किल होगा।
कक्षा 12वीं की इतिहास की किताब को लेकर राजस्थान में छिड़ा विवाद शिक्षा, इतिहास, और राजनीति के बीच की नाजुक रेखा को उजागर करता है। जहां सरकार इसे कांग्रेसी विचारधारा का प्रचार मान रही है, वहीं विपक्ष इसे ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ का प्रयास बता रहा है। इस बीच, लाखों छात्रों का भविष्य अनिश्चितता के भंवर में फंस गया है। सरकार को चाहिए कि वह समीक्षा प्रक्रिया को पारदर्शी और तेजी से पूरा करे, ताकि छात्रों का शैक्षिक नुकसान न हो और शिक्षा तटस्थता के सिद्धांत पर टिकी रहे।
लेखक: TharToday.com टीम
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