राजनीति

राजस्थान विधानसभा के मानसून सत्र से पहले सियासी तूफान: कांग्रेस ने किया सर्वदलीय बैठक का बहिष्कार

जयपुर: राजस्थान की 16वीं विधानसभा का मानसून सत्र 1 सितंबर 2025 से शुरू होने जा रहा है, लेकिन इससे पहले ही राज्य की सियासत में हलचल तेज हो गई है। सत्र की शुरुआत से पहले बुलाई गई सर्वदलीय बैठक का मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने बहिष्कार कर दिया है। इस कदम ने सत्तारूढ़ बीजेपी और कांग्रेस के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है, जिससे सत्र के हंगामेदार होने के आसार दिख रहे हैं।

कांग्रेस का बहिष्कार: कारण और दावे

विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने सत्र के सुचारू संचालन के लिए गुरुवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, जिसमें सभी दलों के नेताओं को आमंत्रित किया गया था। कांग्रेस की ओर से नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और मुख्य सचेतक रफीक खान को इस बैठक में हिस्सा लेना था, लेकिन दोनों नेताओं ने बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया।

कांग्रेस ने इस बहिष्कार के पीछे सरकार के रवैये को जिम्मेदार ठहराया है। टीकाराम जूली ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर अपनी बात रखते हुए कहा, “वर्तमान सरकार का रवैया पूरी तरह एकतरफा है। जब हमारी सरकार थी, तब तत्कालीन मुख्यमंत्री ने 200 विधायकों और 25 सांसदों की बात सुनी थी, लेकिन मौजूदा सरकार केवल अपने विधायकों, सांसदों और चुनाव हारे प्रत्याशियों से ही संवाद कर रही है।” उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष की आवाज को लगातार दबाया जा रहा है, जिसके चलते मजबूरी में यह फैसला लिया गया।

जूली ने यह भी बताया कि कांग्रेस विधायक दल की बैठक 2 सितंबर को होगी, जिसमें पार्टी प्रभारी, प्रदेश अध्यक्ष, पूर्व मुख्यमंत्री और अन्य वरिष्ठ नेता शामिल होंगे। इस बैठक में सत्र के दौरान विपक्ष की रणनीति तय की जाएगी।

बीजेपी का जवाब: कांग्रेस पर लगाए गंभीर आरोप

कांग्रेस के इस कदम पर बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। सरकारी मुख्य सचेतक जोगेश्वर गर्ग ने कांग्रेस के बहिष्कार को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ करार देते हुए कहा, “विपक्ष मैदान छोड़कर भाग रहा है।” उन्होंने कांग्रेस पर आंतरिक कलह का आरोप लगाते हुए कहा कि यह बहिष्कार ‘डोटासरा बनाम जूली’ की आपसी लड़ाई का नतीजा हो सकता है। गर्ग ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष और सरकार सत्र में सकारात्मक माहौल बनाना चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस के इस रवैये ने सदन की गरिमा को ठेस पहुंचाई है।

मानसून सत्र: क्या होगा प्रभाव?

1 सितंबर से शुरू होने वाला विधानसभा का मानसून सत्र कई महत्वपूर्ण मुद्दों और विधेयकों पर चर्चा का गवाह बनेगा। कांग्रेस ने स्पष्ट किया है कि वह सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेगी, लेकिन सर्वदलीय बैठक के बहिष्कार से सरकार और विपक्ष के बीच तल्खी पहले ही सतह पर आ चुकी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह टकराव सत्र को हंगामेदार बना सकता है, जिससे जनता से जुड़े अहम मुद्दों पर चर्चा प्रभावित हो सकती है।

सत्र से पहले बढ़ी सियासी गर्मी

सर्वदलीय बैठक का उद्देश्य सत्र के दौरान सभी दलों के बीच सहमति बनाना और सदन की कार्यवाही को सुचारू रखना था। हालांकि, कांग्रेस के इस कदम ने न केवल सत्तापक्ष को नाराज किया है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि विपक्ष सत्र में आक्रामक रुख अपना सकता है। बीजेपी ने कांग्रेस के बहिष्कार को विपक्ष की कमजोरी और आंतरिक मतभेदों का प्रतीक बताया है, जबकि कांग्रेस का दावा है कि वह जनता के मुद्दों को उठाने के लिए दृढ़ है।

आने वाले दिनों में विधानसभा सत्र के दौरान दोनों पक्षों के बीच तीखी बहस और टकराव की संभावना बढ़ गई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस और बीजेपी के बीच यह तनाव जनता के हितों को प्रभावित करेगा या सत्र में रचनात्मक चर्चा की दिशा में कोई रास्ता निकलेगा।

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