‘पति-पत्नी भी फोन पर डरते हैं, फेसटाइम पर करते हैं बात’: अशोक गहलोत का फोन टैपिंग पर सनसनीखेज बयान, देश में डर का माहौल

जयपुर | राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने देश में नागरिकों की निजता और फोन टैपिंग को लेकर एक चौंकाने वाला बयान दिया है, जिसने गोपनीयता और निगरानी के मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। गहलोत ने दावा किया कि देश में डर का ऐसा माहौल बन गया है कि लोग फोन पर खुलकर बात करने से कतराते हैं। उनके मुताबिक, यह डर इतना गहरा है कि पति-पत्नी जैसे निजी रिश्तों में भी लोग सामान्य फोन कॉल के बजाय फेसटाइम जैसे सुरक्षित प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह बयान, जो मूल रूप से 2021 में राजस्थान विधानसभा में दिया गया था, अब 2025 में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर वायरल हो रहा है, जिससे गोपनीयता और नागरिक स्वतंत्रता पर बहस तेज हो गई है।

बयान की पृष्ठभूमि

गहलोत ने यह टिप्पणी 2021 में राजस्थान विधानसभा में उस समय की थी, जब वह मुख्यमंत्री थे और केंद्र सरकार पर निशाना साध रहे थे। उनका यह बयान उस समय के पेगासस जासूसी कांड से जुड़ा था, जिसने देश में निगरानी और गोपनीयता को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए थे। गहलोत ने कहा था, “देश में हालात इतने डरावने बना दिए गए हैं कि लोग फोन पर बात करने से डरते हैं। पति-पत्नी भी एक-दूसरे से कहते हैं, ‘फेसटाइम पर बात करो’।” यह बयान अब 2025 में फिर से चर्चा में आया है, क्योंकि एक्स पर इसे व्यापक रूप से साझा किया जा रहा है। यह दर्शाता है कि फोन टैपिंग और निगरानी का डर आज भी लोगों के मन में बना हुआ है।

पेगासस विवाद और निगरानी का डर

2021 में सामने आए पेगासस जासूसी कांड ने भारत में गोपनीयता को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा किया था। पेगासस, इजरायल की एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित एक स्पायवेयर, किसी के फोन में बिना उनकी जानकारी के घुसपैठ कर सकता है और कॉल, मैसेज, और डेटा तक पहुंच सकता है। एक अंतरराष्ट्रीय जांच में खुलासा हुआ था कि भारत में कई पत्रकारों, राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, और अन्य प्रमुख हस्तियों के फोन इस सॉफ्टवेयर के जरिए निशाने पर थे। इस खुलासे ने आम लोगों के बीच यह डर पैदा किया कि उनकी निजी बातचीत भी सुरक्षित नहीं है।

गहलोत का बयान इसी डर को रेखांकित करता है। उनके अनुसार, यह डर इतना गहरा है कि यह न केवल सार्वजनिक जीवन, बल्कि निजी रिश्तों को भी प्रभावित कर रहा है। लोग फोन कॉल की जगह फेसटाइम जैसे एन्क्रिप्टेड वीडियो कॉलिंग प्लेटफॉर्म्स का सहारा ले रहे हैं, क्योंकि इन्हें सामान्य फोन कॉल की तुलना में अधिक सुरक्षित माना जाता है।

राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव

  1. राजनीतिक हमला: गहलोत का यह बयान केंद्र सरकार और तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी पर एक तीखा हमला था। उन्होंने सरकार पर नागरिकों की निजता का हनन करने और डर का माहौल बनाने का आरोप लगाया। यह बयान विपक्ष के उस दावे को मजबूत करता है, जिसमें सरकार पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने और निगरानी बढ़ाने का आरोप लगाया जाता है। केंद्र सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि निगरानी केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए और कानूनी प्रक्रियाओं के तहत की जाती है।
  2. सामाजिक चिंता: गहलोत का यह दावा समाज में गोपनीयता को लेकर बढ़ती चिंताओं को दर्शाता है। एक्स पर कई यूजर्स ने इस बयान का समर्थन किया और बताया कि वे भी फोन पर संवेदनशील बातचीत करने से बचते हैं। कुछ यूजर्स ने इसे अतिशयोक्ति करार दिया और कहा कि यह राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास है।
  3. तकनीकी आयाम: फोन टैपिंग का डर लोगों को व्हाट्सऐप, सिग्नल, और फेसटाइम जैसे एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म्स की ओर ले जा रहा है। ये प्लेटफॉर्म्स एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन प्रदान करते हैं, जिससे डेटा की सुरक्षा बढ़ती है। हालांकि, तकनीकी विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि उन्नत तकनीकों के सामने कोई भी प्लेटफॉर्म पूरी तरह सुरक्षित नहीं है।

2025 में बयान का पुनर्जनन

2025 में इस बयान का फिर से चर्चा में आना इस बात का संकेत है कि गोपनीयता और निगरानी के मुद्दे आज भी प्रासंगिक हैं। डिजिटल युग में स्मार्टफोन और इंटरनेट के बढ़ते उपयोग ने निगरानी के डर को और बढ़ाया है। लोग अब न केवल सरकारी निगरानी, बल्कि निजी कंपनियों द्वारा डेटा संग्रह और साइबर अपराधों से भी चिंतित हैं। भारत में डेटा प्रोटेक्शन बिल जैसे कदम उठाए गए हैं, लेकिन इनकी प्रभावशीलता पर सवाल बने हुए हैं।

आगे की राह

गहलोत का यह बयान न केवल एक राजनीतिक टिप्पणी है, बल्कि यह समाज में गोपनीयता और विश्वास के संकट को भी उजागर करता है। इस मुद्दे को हल करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  • पारदर्शी निगरानी नीतियां: निगरानी प्रक्रियाओं को पारदर्शी और जवाबदेह बनाया जाए।
  • डिजिटल साक्षरता: लोगों को सुरक्षित संचार के तरीकों और गोपनीयता संरक्षण के बारे में शिक्षित किया जाए।
  • मजबूत डेटा संरक्षण कानून: नागरिकों की निजता की रक्षा के लिए प्रभावी कानून लागू किए जाएं।
  • जागरूकता अभियान: टेली मैनस (14416) जैसे मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन और सुरक्षित संचार प्लेटफॉर्म्स को बढ़ावा दिया जाए।

निष्कर्ष

अशोक गहलोत का यह बयान देश में गोपनीयता और निगरानी के मुद्दों पर एक गंभीर विमर्श को जन्म देता है। यह दर्शाता है कि डिजिटल युग में निजता एक बड़ी चुनौती बन गई है। पति-पत्नी जैसे निजी रिश्तों में भी अगर लोग खुलकर बात करने से डर रहे हैं, तो यह सामाजिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर गहरे प्रभाव को दर्शाता है। सरकार और समाज को मिलकर इस डर को दूर करने और नागरिकों के विश्वास को बहाल करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

यदि आप या आपका कोई परिचित गोपनीयता या निगरानी के डर से मानसिक तनाव में हैं, तो टेली मैनस हेल्पलाइन (14416) पर 24/7 सहायता के लिए संपर्क करें।

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