बाड़मेर | राजस्थान के बाड़मेर जिले में हाई टेंशन ट्रांसमिशन लाइन परियोजनाओं के नाम पर निजी कंपनियों और कुछ सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से किसानों का शोषण एक गंभीर मुद्दा बन गया है। हाल ही में सामने आए एक सनसनीखेज मामले ने इस समस्या को और उजागर किया है, जिसमें एक ग्राम विकास अधिकारी (VDO) ने फर्जी कनिष्ठ अभियंता (Junior Engineer) बनकर किसानों की सिंचाई डिग्गियों का नाप लेने की कोशिश की। यह घटना न केवल भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को दर्शाती है, बल्कि किसानों की सतर्कता के महत्व को भी रेखांकित करती है।
घटना का विवरण: फर्जी कनिष्ठ अभियंता का पर्दाफाश
यह घटना मंगलवार को बाड़मेर जिले के बालोतरा तहसील के रतेऊ गांव में सामने आई। फतेहगढ़-ब्यावर हाई टेंशन ट्रांसमिशन लाइन परियोजना के लिए कार्य कर रही एक निजी कंपनी के कर्मचारी, रामदेरिया ग्राम पंचायत के ग्राम विकास अधिकारी खेताराम के साथ, एक किसान के खेत में पहुंचे। खेताराम ने खुद को कनिष्ठ अभियंता बताते हुए किसान की सिंचाई डिग्गी का नाप लेना शुरू किया। इस दौरान कंपनी के कर्मचारी और खेताराम ने किसान पर दबाव बनाया कि नाप लेना आवश्यक है, ताकि मुआवजा रिपोर्ट तैयार की जा सके।
हालांकि, किसान की सतर्कता ने इस फर्जीवाड़े को उजागर कर दिया। किसान ने नाप की प्रक्रिया का वीडियो बनाना शुरू किया और खेताराम से उनकी पोस्टिंग और कार्यक्षेत्र के बारे में सवाल पूछे। इन सवालों का जवाब देने में खेताराम असमर्थ रहा, और उसकी घबराहट साफ दिखाई दी। जैसे ही मामला गंभीर हुआ, खेताराम और कंपनी के कर्मचारी मौके से फरार हो गए। इस वीडियो के वायरल होने के बाद स्थानीय स्तर पर हंगामा मच गया।
जांच में खुलासा: ग्राम विकास अधिकारी की भूमिका
मामले की गहन पड़ताल के बाद पता चला कि खेताराम रामदेरिया ग्राम पंचायत में ग्राम विकास अधिकारी के पद पर कार्यरत है। आरोप है कि उसने निजी कंपनी के अधिकारियों से मोटी रकम लेकर फर्जी कनिष्ठ अभियंता की भूमिका निभाई। उसका उद्देश्य किसान की डिग्गी का नाप लेकर मुआवजा रिपोर्ट तैयार करना था, जिसके आधार पर कंपनी और कुछ भ्रष्ट अधिकारियों को अनुचित लाभ हो सकता था। इस तरह की गतिविधियां न केवल किसानों के अधिकारों का हनन करती हैं, बल्कि सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार की गहरी पैठ को भी उजागर करती हैं।
किसानों का शोषण: एक व्यापक समस्या
यह घटना बाड़मेर जिले में चल रही हाई टेंशन ट्रांसमिशन लाइन परियोजनाओं में किसानों के शोषण का केवल एक उदाहरण है। निजी कंपनियां, स्थानीय अधिकारियों और कुछ सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से किसानों की जमीन और संसाधनों का अनुचित उपयोग किया जा रहा है। कई मामलों में किसानों को उचित मुआवजा देने के बजाय, उनकी जमीन पर जबरदस्ती कार्य शुरू कर दिया जाता है। इसके अलावा, फर्जी दस्तावेज और गलत मुआवजा रिपोर्ट तैयार कर किसानों को आर्थिक नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
किसानों की सतर्कता और आगे की राह
इस मामले में किसान की सतर्कता ने न केवल फर्जीवाड़े को उजागर किया, बल्कि अन्य किसानों के लिए भी एक मिसाल कायम की। वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे साधनों का उपयोग कर किसान अब अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सशक्त हो रहे हैं। यह घटना प्रशासन और संबंधित विभागों के लिए एक चेतावनी है कि ऐसी गतिविधियों पर सख्त कार्रवाई की जाए।
जिला प्रशासन को इस मामले की गहन जांच करनी चाहिए और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। साथ ही, किसानों को उनके अधिकारों और मुआवजा प्रक्रिया के बारे में जागरूक करने के लिए विशेष अभियान चलाए जाने चाहिए। यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न दोहराई जाएं और किसानों के हितों की रक्षा हो।