राजस्थान में कफ सिरप से जुड़ी बच्चों की मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। चूरू जिले में 6 साल के मासूम अनस की जान चली गई, जबकि भरतपुर के मलाह गांव में 2 साल के सम्राट जाटव की मौत के मामले में चिकित्सा विभाग ने जांच शुरू कर दी है। इन घटनाओं ने राज्य के स्वास्थ्य तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, और परिजनों ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।
चूरू में अनस की दर्दनाक मौत
चूरू के एक बच्चे अनस को खांसी की समस्या होने पर परिजन स्थानीय सरकारी अस्पताल ले गए थे। वहां डॉक्टरों ने कफ सिरप दिया, लेकिन बच्चे की हालत बिगड़ने लगी। गंभीर स्थिति में अनस को जयपुर के जेके लोन अस्पताल रेफर किया गया, जहां कल इलाज के दौरान उसने दम तोड़ दिया। बच्चे के पिता नवाब खान ने आरोप लगाया कि अस्पताल में दी गई कफ सिरप ही मौत का कारण बनी। उन्होंने जिम्मेदार चिकित्सकों और अधिकारियों पर तत्काल कार्रवाई की मांग की है। यह घटना राज्य में दवाओं की गुणवत्ता और वितरण व्यवस्था पर सवाल उठा रही है।
भरतपुर में सम्राट जाटव की मौत पर जांच का दौर
दूसरी ओर, भरतपुर के मलाह गांव में 2 साल के सम्राट जाटव की कफ सिरप पीने से मौत के मामले में चिकित्सा विभाग की उच्च स्तरीय टीम ने जांच तेज कर दी है। शनिवार (4 अक्टूबर) को मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के नोडल प्रभारी डॉ. रामबाबू जायसवाल, लॉजिस्टिक कार्यकारी डॉ. विकास शर्मा, सीएमएचओ डॉ. गौरव कपूर और जिला औषधि भंडार प्रभारी डॉ. मनीष चौधरी सहित अन्य चिकित्सक मृतक के घर पहुंचे।
टीम ने परिजनों से विस्तृत पूछताछ की। सम्राट के परिवार ने बताया कि बच्चा 4-5 दिन तक जयपुर में भर्ती रहा था, लेकिन वे गांव के उप स्वास्थ्य केंद्र पर ही निर्भर रहते थे। सिरप भी यहीं से प्राप्त किया गया था। डॉक्टरों ने पूछा कि क्या किसी भोपा या पारंपरिक वैद्य को दिखाया गया था, जिसका परिजनों ने खंडन किया। जब टीम ने सिरप की बोतल मांगी, तो परिजनों ने बताया कि यह मलाह के उप स्वास्थ्य केंद्र से मिली थी। उस दिन केंद्र पर तीन बच्चों को टीकाकरण भी हुआ था, और कई अन्य लोग मौजूद थे।
स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल, परिजनों का गुस्सा
इन घटनाओं ने राजस्थान के ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में दवाओं की आपूर्ति और गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि नकली या खराब कफ सिरप बच्चों के लिए घातक साबित हो रहे हैं। परिजनों का आरोप है कि सरकारी अस्पतालों में दी जा रही दवाओं की जांच सख्ती से नहीं हो रही। राज्य सरकार को अब तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है, जिसमें सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर दवाओं की जांच, स्टॉक की ऑडिट और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई शामिल हो।
ये मौतें न केवल परिवारों के लिए दुखद हैं, बल्कि पूरे राज्य के लिए चिंता का विषय हैं। उम्मीद है कि जांच में सच्चाई सामने आएगी और भविष्य में ऐसी त्रासदियां दोहराई न जाएं।
