बीकानेर – बीकानेर जिला तेजी से सोलर ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी बन रहा है। रेगिस्तान की धूप से बिजली पैदा करने के लिए बड़ी-बड़ी कंपनियां सोलर प्लांट्स स्थापित कर रही हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर खुल रहे हैं। लेकिन इस विकास की कीमत चुका रहे हैं राजस्थान के राज्य वृक्ष खेजड़ी, जिनकी अंधाधुंध कटाई ने पर्यावरण प्रेमियों और स्थानीय समुदाय को आक्रोशित कर दिया है। सवाल यह है कि इतना सब होने के बावजूद जिला प्रशासन खामोश क्यों है?
बीकानेर की सभी तहसीलों – पूगल, लूणकरणसर, छतरगढ़, कोलायत और नोखड़ा – में सोलर प्लांट्स का निर्माण तेजी से हो रहा है। कई नई कंपनियां जमीन अधिग्रहण कर रही हैं, और चारदीवारी व भूमि समतलीकरण का काम जोरों पर है। इन प्रोजेक्ट्स ने न केवल राष्ट्रीय स्तर पर हरित ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा दिया है, बल्कि स्थानीय मजदूरों, तकनीशियनों और छोटे व्यवसायियों के लिए रोजगार के द्वार भी खोले हैं। एक स्थानीय निवासी गोविंद सिंह ने कहा, “सोलर प्लांट्स से हमारे गांव में काम मिला है, लेकिन खेजड़ी के बिना हमारी जमीन बंजर हो जाएगी।”
सोलर प्लांट्स के लिए भूमि साफ करने के नाम पर खेजड़ी वृक्षों की बड़े पैमाने पर कटाई हो रही है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इस साल अब तक जिले में 900 से अधिक खेजड़ी पेड़ काटे जा चुके हैं। स्थानीय कार्यकर्ताओं का कहना है कि वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है। खेजड़ी, जो रेगिस्तानी मिट्टी को बांधे रखता है और पशुपालकों के लिए चारे का स्रोत है, अब खतरे में है। इसकी सांगरी और लूंग स्थानीय अर्थव्यवस्था और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। पर्यावरणविद् डॉ. सूर्यप्रकाश शर्मा ने चेतावनी दी, “खेजड़ी की कटाई से मिट्टी का क्षरण बढ़ेगा और जैव विविधता को भारी नुकसान होगा।”
पिछले एक साल से बिश्नोई समाज और पर्यावरण प्रेमी जिला मुख्यालय पर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। दिसंबर 2024 में ‘बीकानेर बंद’ और अगस्त 2025 में मुख्यमंत्री के दौरे के दौरान विरोध प्रदर्शन हुए, लेकिन प्रशासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। राजस्थान वन अधिनियम के तहत खेजड़ी कटाई पर सख्त नियम हैं, फिर भी न तो वन विभाग और न ही राजस्व विभाग ने प्रभावी कार्रवाई की। हाल ही में लूणकरणसर में एक 12 साल की छात्रा द्वारा खेजड़ी पेड़ों को राखी बांधने का वीडियो वायरल हुआ, जिसने प्रशासन की उदासीनता को और उजागर किया।
कुछ कंपनियां दावा करती हैं कि वे कटाई के बदले पौधरोपण कर रही हैं। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि नए पौधों को परिपक्व होने में दशकों लगेंगे, जबकि खेजड़ी का पारिस्थितिकीय योगदान तत्काल है। एक सोलर कंपनी के प्रतिनिधि ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हम पौधे तो लगा रहे हैं, लेकिन लागत और समय की कमी के कारण बड़े पैमाने पर रोपण मुश्किल है।”
पर्यावरण कार्यकर्ताओं और स्थानीय समुदाय ने जिला कलेक्टर से एक प्रभावी एक्शन प्लान की मांग की है, जिसमें शामिल हो:
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