अजमेर | अजमेर में अवैध निर्माणों के खिलाफ प्रशासन की सख्त कार्रवाई के बीच राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्थानीय निवासी अब्दुल सत्तर की दुकान और मकान को तोड़ने की कार्रवाई पर अंतरिम रोक लगा दी है। यह आदेश उस समय आया है, जब अजमेर नगर निगम और प्रशासन शहर में अवैध निर्माणों को हटाने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चला रहे हैं। हाईकोर्ट का यह हस्तक्षेप न केवल अब्दुल सत्तर के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि यह अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया और पारदर्शिता पर भी सवाल उठाता है।
अजमेर में अवैध निर्माणों के खिलाफ चल रहे अभियान के तहत अब्दुल सत्तर की दुकान और मकान को तोड़ने की योजना थी। स्थानीय प्रशासन ने इसे अवैध निर्माण घोषित किया था और तोड़फोड़ के लिए नोटिस जारी किया था। हालांकि, अब्दुल सत्तर ने इस कार्रवाई को राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी। उनकी याचिका में दावा किया गया कि उनकी संपत्ति को अवैध घोषित करने की प्रक्रिया में उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और उन्हें अपनी बात रखने का पूरा मौका नहीं दिया गया।
हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रशासन को तत्काल प्रभाव से तोड़फोड़ पर रोक लगाने का आदेश दिया। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि मामले की गहन जांच की जाए और याचिकाकर्ता को उचित सुनवाई का अवसर दिया जाए। यह आदेश 12 जुलाई 2025 को जारी किया गया, जिसके बाद अब्दुल सत्तर की संपत्ति पर फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं हो सकती।
अजमेर में अवैध निर्माण लंबे समय से एक ज्वलंत मुद्दा रहा है। शहर के कई हिस्सों में बिना अनुमति या नियमों का उल्लंघन करके बनाई गई इमारतें और दुकानें प्रशासन के निशाने पर हैं। अजमेर नगर निगम ने इन निर्माणों को हटाने के लिए कई बार अभियान चलाए हैं, जिनका उद्देश्य शहर को अतिक्रमण से मुक्त करना और योजनाबद्ध शहरी विकास को बढ़ावा देना है।
हालांकि, ऐसी कार्रवाइयों में अक्सर विवाद उत्पन्न हो जाते हैं। कई संपत्ति मालिक दावा करते हैं कि उनके पास वैध दस्तावेज हैं या उन्हें उचित सुनवाई का मौका नहीं मिला। अब्दुल सत्तर का मामला भी इसी तरह का है, जहां उन्होंने प्रशासन के फैसले को चुनौती दी और कोर्ट से राहत हासिल की।
राजस्थान हाईकोर्ट का यह अंतरिम आदेश कई मायनों में महत्वपूर्ण है:
अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई और उस पर न्यायिक हस्तक्षेप भारत के अन्य शहरों में भी देखा गया है:
ये मामले दर्शाते हैं कि अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई अक्सर विवादास्पद होती है और इसमें प्रक्रियात्मक निष्पक्षता का अभाव एक बड़ी समस्या है।
हाईकोर्ट का यह आदेश अब्दुल सत्तर के लिए केवल अस्थायी राहत है। मामले की अगली सुनवाई में कोर्ट यह तय करेगा कि क्या उनकी संपत्ति वास्तव में अवैध है या नहीं। इस बीच, यह मामला कई सवाल खड़े करता है:
विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि प्रशासन को निम्नलिखित उपाय करने चाहिए:
राजस्थान हाईकोर्ट का अब्दुल सत्तर की संपत्ति की तोड़फोड़ पर रोक लगाने का आदेश एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न केवल एक व्यक्ति को राहत देता है, बल्कि अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई में निष्पक्षता और पारदर्शिता की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है। यह मामला अजमेर में अवैध निर्माणों के खिलाफ चल रहे अभियान को और सुर्खियों में लाएगा। प्रशासन को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी कार्रवाइयों में कानूनी प्रक्रिया का पालन हो और नागरिकों के अधिकारों का सम्मान हो।
यदि आप या आपका कोई परिचित अवैध निर्माण या प्रशासनिक कार्रवाई से प्रभावित हैं, तो कानूनी सलाह लें और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए उचित कदम उठाएं।
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