जैसलमेर | राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में खेती को हरा-भरा करने के लिए शुरू की गई इंदिरा गांधी नहर परियोजना (आईजीएनपी) की सामुदायिक डिग्गी योजना अपनी शुरुआत के 8 साल बाद भी अधूरी है। 1800 करोड़ रुपये की लागत वाली इस महत्वाकांक्षी योजना में अब तक करीब 918 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन न तो एक भी खेत तक पानी पहुँचा है और न ही किसानों को मुआवजा मिला है। खराब निर्माण गुणवत्ता, भ्रष्टाचार के आरोप, और बिना भूमि अधिग्रहण के डिग्गी निर्माण ने इस परियोजना को विवादों के घेरे में ला दिया है।
डिग्गी योजना: मकसद और हकीकत
इंदिरा गांधी नहर परियोजना के तहत 2017 में शुरू की गई सामुदायिक डिग्गी योजना का उद्देश्य छह लिफ्ट नहरों के 3.47 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बूंद-बूंद (ड्रिप) सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराना था। इसके लिए 1200 बीघा भूमि पर 304 डिग्गियाँ बनाई गईं, जिनमें से प्रत्येक पर औसतन 1.25 करोड़ रुपये खर्च हुए। पहले चरण में 668 करोड़ रुपये और दूसरे चरण के लिए प्रस्तावित 250 करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद, परियोजना अपनी तय समय-सीमा (सितंबर 2018) से बहुत पीछे है।
हैरानी की बात यह है कि डिग्गियों का निर्माण बिना भूमि अधिग्रहण के किया गया, जिसके कारण किसानों को मुआवजा नहीं मिला। स्थानीय किसानों का कहना है कि वे न तो अपनी जमीन का मुआवजा पा सके और न ही डिग्गियों से सिंचाई का लाभ। रणधीसर माइनर पर बनी 26 डिग्गियों की जाँच में पाया गया कि कई डिग्गियों की दीवारों में दरारें हैं, फर्श धंस चुका है, और पानी भरते ही सीपेज के कारण डिग्गियाँ खाली हो जाती हैं।
किसानों की शिकायत: घटिया निर्माण और भ्रष्टाचार
रणधीसर माइनर पर 104 बीघा भूमि पर बनी डिग्गियों का हाल देखकर किसान निराश हैं। स्थानीय किसान गोपाल सिंह सोलंकी, बलजीत सिंह, मनोहर सिंह, और छैलू सिंह ने बताया कि डिग्गियों में घटिया सामग्री का उपयोग हुआ है, जिसके कारण वे उपयोग से पहले ही खराब हो रही हैं। किसानों का आरोप है कि ठेकेदारों ने सरकारी धन का दुरुपयोग किया और निर्माण गुणवत्ता की पूरी तरह अनदेखी की।
किसानों ने यह भी बताया कि डिग्गियाँ पानी भरने से पहले ही धंसने लगी हैं, जिससे सिंचाई का सपना अधूरा रह गया है। कई किसानों ने कहा, “हमारी जमीन पर डिग्गियाँ बनीं, लेकिन न हमें मुआवजा मिला और न ही खेतों में पानी। खाली डिग्गियाँ और दरकी दीवारें हमारी मजबूरी का मज़ाक उड़ा रही हैं।”
प्रशासन का दावा: जाँच और सुधार की प्रक्रिया शुरू
अतिरिक्त मुख्य अभियंता (आईजीएनपी) विवेक गोयल ने बताया कि 304 डिग्गियाँ तैयार हैं और 176 ट्रांसफार्मर लगाए जा चुके हैं। विद्युत कनेक्शन जोड़ने की प्रक्रिया चल रही है। उन्होंने दावा किया कि ठेकेदारों से पाँच साल की गारंटी के तहत निर्माण गुणवत्ता की जाँच कर सुधार कराया जाएगा। साथ ही, भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
हालांकि, किसानों और स्थानीय लोगों का कहना है कि नए टेंडर जारी करने से पहले पुराने निर्माण कार्यों की गहन जाँच जरूरी है। भ्रष्टाचार के आरोपों और खराब गुणवत्ता की शिकायतों को देखते हुए यह माँग और भी प्रासंगिक हो जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि बिना उचित जाँच और जवाबदेही के नए टेंडर से परियोजना की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता पर और सवाल उठेंगे।
योजना की पृष्ठभूमि और चुनौतियाँ
इंदिरा गांधी नहर परियोजना राजस्थान के लिए जीवनरेखा मानी जाती है, जो सूखे और रेगिस्तानी क्षेत्रों में खेती को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई थी। सामुदायिक डिग्गी योजना इस परियोजना का हिस्सा है, जिसके तहत डिग्गियाँ बनाकर पानी का भंडारण किया जाना था, ताकि ड्रिप सिंचाई के जरिए पानी की बर्बादी रोकी जा सके। लेकिन, बजट में देरी, स्कीम में बदलाव, और ठेकेदारों की लापरवाही ने इस परियोजना को अटका दिया।
2017 में केंद्र और राज्य सरकार ने 1800 करोड़ रुपये की इस योजना को मंजूरी दी थी, लेकिन 8 साल बाद भी यह अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाई। पहले चरण में 668 करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी कोई ठोस परिणाम नहीं दिखा। दूसरे चरण के लिए 250 करोड़ रुपये प्रस्तावित हैं, लेकिन किसानों का विश्वास अब टूट रहा है।
किसानों की माँग और भविष्य की राह
किसान मुआवजे के साथ-साथ डिग्गियों की मरम्मत, गुणवत्तापूर्ण निर्माण, और परियोजना को जल्द पूरा करने की माँग कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों की उच्च स्तरीय जाँच कराए और ठेकेदारों को जवाबदेह बनाए। साथ ही, भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को पारदर्शी और तेजी से पूरा करने की जरूरत है।
यह घटना न केवल सरकारी योजनाओं की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती है, बल्कि किसानों के प्रति प्रशासन की जवाबदेही को भी कटघरे में खड़ा करती है। यदि समय रहते इस परियोजना को पटरी पर नहीं लाया गया, तो राजस्थान के किसानों का खेती के प्रति भरोसा और कमजोर हो सकता है।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- प्रोजेक्ट लागत: 1800 करोड़ रुपये
- अब तक खर्च: 918 करोड़ रुपये (लगभग)
- पहले चरण में खर्च: 668 करोड़ रुपये
- दूसरे चरण में प्रस्तावित: 250 करोड़ रुपये
- बनी डिग्गियाँ: 304
- एक डिग्गी की लागत: 1.25 करोड़ रुपये
- लिफ्ट नहरों की संख्या: 6
- तय समय-सीमा: सितंबर 2018
- वर्तमान स्थिति: 8 साल बाद भी अधूरी