जयपुर | राजस्थान में स्मार्ट मीटर योजना को लेकर सियासी तूफान खड़ा हो गया है। कांग्रेस ने इस योजना को 10,000 करोड़ रुपये के टेंडर घोटाले से जोड़ा, जबकि भाजपा सरकार इसे जनता के हित में पारदर्शी कदम बता रही है। ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर ने इसे पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की योजना का विस्तार बताया, लेकिन बढ़ते बिलों और पुराने मीटरों को हटाने की प्रक्रिया ने जनता और विपक्ष के बीच असंतोष को बढ़ा दिया है।
स्मार्ट मीटर योजना: उद्देश्य और विशेषताएं
स्मार्ट मीटर मीटर बिजली की खपत को रीयल-टाइम में रिकॉर्ड करते हैं और डेटा को उपभोक्ताओं व बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) तक भेजते हैं। इसके प्रमुख लाभ हैं:
- पारदर्शिता: उपभोक्ता अपनी बिजली खपत को स्मार्टफोन पर ट्रैक कर सकते हैं।
- बिजली चोरी पर रोक: मीटर छेड़छाड़ और चोरी को मुश्किल बनाते हैं।
- तुरंत शिकायत समाधान: तकनीकी खराबी का तुरंत पता लगाया जा सकता है।
- राजस्व संग्रहण: प्रीपेड मीटर से समय पर भुगतान सुनिश्चित होता है।
- डेटा संग्रह: बिजली खपत के आंकड़े भविष्य की योजनाओं में मदद करते हैं।
केंद्र सरकार की रिवैम्प्ड डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम (RDSS) के तहत राजस्थान में एक करोड़ से अधिक स्मार्ट मीटर लगाने की योजना है।
कांग्रेस के आरोप
कांग्रेस ने स्मार्ट मीटर योजना पर तीखे सवाल उठाए हैं:
- 10,000 करोड़ का घोटाला: कांग्रेस नेता प्रताप सिंह खाचरियावास ने दावा किया कि प्राइवेट कंपनियों के साथ मिलकर सरकार टेंडर में भारी भ्रष्टाचार की योजना बना रही है। स्मार्ट मीटरों की लागत जनता के टैक्स से वसूली जाएगी, जिससे बिजली बिल बढ़ेंगे।
- अनावश्यक मीटर बदलाव: नियमों के अनुसार, केवल खराब मीटरों को बदला जाना चाहिए, लेकिन ठीक चल रहे पुराने मीटरों को हटाया जा रहा है, जो अनुचित है।
- बिलों में गड़बड़ी: जयपुर में एक बंद घर में स्मार्ट मीटर से 1.26 लाख रुपये का बिल आने का मामला सामने आया, जिसने योजना की सटीकता पर सवाल उठाए।
ऊर्जा मंत्री का जवाब
ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा:
- कांग्रेस की योजना का विस्तार: गहलोत सरकार के दौरान 5 लाख स्मार्ट मीटर लगाए गए थे, तब कांग्रेस ने कोई विरोध नहीं किया। अब केवल राजनीतिक लाभ के लिए भ्रम फैलाया जा रहा है।
- खाचरियावास पर निशाना: नागर ने कहा कि खाचरियावास उस समय मंत्री थे, फिर उन्होंने गहलोत के सामने विरोध क्यों नहीं किया?
- जनता के हित में: स्मार्ट मीटर से बिलिंग में पारदर्शिता आएगी, शिकायतों का तुरंत समाधान होगा, और डिस्कॉम को राजस्व संग्रहण में मदद मिलेगी।
जनता की शिकायतें
- असामान्य बिल: जयपुर में एक बंद घर का 1.26 लाख रुपये का बिल और अन्य राज्यों में स्मार्ट मीटरों से अधिक बिलों की शिकायतों ने योजना की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए।
- लागत का बोझ: स्मार्ट मीटर की लागत (7,000-17,000 रुपये) और मासिक रखरखाव शुल्क (57-75 रुपये) उपभोक्ताओं पर डाला जा सकता है।
- तकनीकी खामियां: गलत रीडिंग और तेजी से चलने की शिकायतें सामने आई हैं।
अन्य नेताओं की प्रतिक्रिया
- हनुमान बेनीवाल (RLP): बेनीवाल ने स्मार्ट मीटरों को घोटाला बताते हुए ऊर्जा मंत्री पर 1 लाख करोड़ के नुकसान का आरोप लगाया। उन्होंने नागर के बकाया बिल का मुद्दा भी उठाया।
- कर्नाटक का उदाहरण: कर्नाटक में स्मार्ट मीटर टेंडर में 15,568 करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप लगे, जिसे कांग्रेस राजस्थान में दोहराए जाने की आशंका जता रही है।