जयपुर में बीजेपी विधायक बालमुकुंद आचार्य का विवाद: थानेदार की कुर्सी पर कब्जा, कांग्रेस बोली- पुलिस की गरिमा का अपमान

जयपुर | राजस्थान की राजधानी जयपुर के रामगंज थाने में बीजेपी विधायक बालमुकुंद आचार्य ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया। हवामहल से विधायक आचार्य थानेदार की कुर्सी पर बैठे नजर आए, जबकि उनके सामने तीन सर्कल इंस्पेक्टर (CI) और अन्य पुलिसकर्मी बैठे दिखे। इस दृश्य की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद सियासी घमासान मच गया है। विपक्षी कांग्रेस ने इसे पुलिस की स्वायत्तता और संवैधानिक मर्यादा पर हमला बताते हुए बीजेपी पर निशाना साधा है।

घटना का ब्योरा

  • क्या हुआ?: सोमवार को बालमुकुंद आचार्य कांवड़ यात्रियों की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर रामगंज थाने पहुंचे। इस दौरान वे थानेदार की कुर्सी पर बैठ गए, और सामने बैठे पुलिसकर्मियों के साथ उनकी चर्चा की तस्वीरें सामने आईं। यह दृश्य कई लोगों को अनुचित लगा, क्योंकि यह पुलिस प्रशासन की स्वतंत्रता पर सवाल उठाता है।
  • वायरल तस्वीरों का असर: सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरों में विधायक को थानेदार की कुर्सी पर बैठा देखकर जनता में नाराजगी फैली। कई लोगों ने इसे सत्ता का दुरुपयोग और पुलिस की गरिमा का अपमान बताया।

कांग्रेस का तीखा हमला

कांग्रेस ने इस घटना को बीजेपी की कार्यशैली का प्रतीक बताते हुए तीखी आलोचना की:

  • “पुलिस को बंधक बनाना”: कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, “बीजेपी विधायक का थानेदार की कुर्सी पर बैठना न केवल अभद्र है, बल्कि यह दिखाता है कि बीजेपी नेता कानून को अपने हाथ में लेना चाहते हैं। यह पुलिस की स्वतंत्रता को बंधक बनाने जैसा है।”
  • संवैधानिक मर्यादा पर सवाल: कांग्रेस ने इस घटना को संवैधानिक पदों की गरिमा का अपमान बताया। एक नेता ने कहा, “पुलिस का काम कानून लागू करना है, न कि नेताओं की कुर्सी सजाना।”
  • सोशल मीडिया पर तंज: कांग्रेस नेताओं ने सोशल मीडिया पर तंज कसते हुए कहा कि बीजेपी विधायक का यह “कुर्सी प्रेम” उनकी सत्ता की भूख को दर्शाता है।

बालमुकुंद आचार्य का जवाब

  • सुरक्षा की मांग: आचार्य ने सफाई दी कि वे कांवड़ यात्रा के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए थाने गए थे। उनका कहना है, “मेरा मकसद पुलिस पर दबाव डालना नहीं था, बल्कि यह सुनिश्चित करना था कि कांवड़ यात्रियों को कोई परेशानी न हो।”
  • विवादों का सिलसिला: यह पहली बार नहीं है जब आचार्य विवादों में घिरे हैं। हठोज धाम के महंत और हिंदुत्व के प्रखर समर्थक आचार्य पहले भी नॉन-वेज दुकानों पर कार्रवाई, हिजाब पर टिप्पणी, और जामा मस्जिद के बाहर विवादित नारेबाजी के लिए चर्चा में रह चुके हैं।
  • बीजेपी की खामोशी: इस मामले पर बीजेपी ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। पार्टी के इस रुख ने सवाल उठाए हैं कि क्या वह आचार्य के इस व्यवहार का समर्थन करती है।

जनता की प्रतिक्रिया

  • सोशल मीडिया पर हंगामा: वायरल तस्वीरों ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है। कुछ यूजर्स ने इसे विधायक का “रुतबा” बताया, तो कई ने इसे सत्ता का दुरुपयोग माना। एक यूजर ने लिखा, “थानेदार की कुर्सी कोई ट्रॉफी नहीं है, जिसे कोई भी हथिया ले।”
  • पुलिस की चुप्पी पर सवाल: लोगों ने सवाल उठाया कि थानेदार ने अपनी कुर्सी विधायक को क्यों सौंपी? क्या यह दबाव में हुआ या पुलिस की लापरवाही थी?
  • लोकतंत्र पर बहस: इस घटना ने राजनेताओं और पुलिस के बीच संबंधों पर चर्चा को हवा दी है। कई लोग इसे राजस्थान में सत्ता और प्रशासन के बीच असंतुलन का उदाहरण मान रहे हैं।

पृष्ठभूमि

  • कौन हैं बालमुकुंद आचार्य?: 48 वर्षीय आचार्य 2023 के विधानसभा चुनाव में हवामहल से 974 वोटों के अंतर से जीते थे। हिंदुत्व के एजेंडे को बढ़ावा देने वाले आचार्य अपनी आक्रामक शैली और विवादित बयानों के लिए जाने जाते हैं।
  • पिछले विवाद: आचार्य ने नॉन-वेज दुकानों को बंद करने, जामा मस्जिद के बाहर “पाकिस्तान मुर्दाबाद” का पोस्टर लगाने, और “लव जिहाद” जैसे मुद्दों पर बयानबाजी कर पहले भी सुर्खियां बटोरी हैं।

क्या है असल मुद्दा?

यह घटना केवल एक विधायक के व्यवहार तक सीमित नहीं है। यह पुलिस की स्वायत्तता, सत्ता का दुरुपयोग, और संवैधानिक पदों की मर्यादा जैसे गंभीर सवाल उठाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की घटनाएँ जनता में पुलिस और प्रशासन के प्रति अविश्वास पैदा कर सकती हैं।

आगे क्या?

  • पुलिस की जांच?: इस मामले में पुलिस प्रशासन से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। यह देखना होगा कि क्या इस घटना की कोई जांच होगी।
  • राजनीतिक घमासान: कांग्रेस इस मुद्दे को विधानसभा में उठाने की तैयारी कर रही है, जिससे बीजेपी पर दबाव बढ़ सकता है।
  • जनता की मांग: स्थानीय लोग मांग कर रहे हैं कि पुलिस और राजनेताओं के बीच स्पष्ट सीमाएँ तय की जाएँ ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएँ न हों।