बीकानेर : राजस्थान के बीकानेर स्थित पीबीएम अस्पताल में शुक्रवार को हुई फायर मॉक ड्रिल ने स्वास्थ्य सेवाओं की लापरवाही को आईने की तरह दिखा दिया। जयपुर के एसएमएस अस्पताल अग्निकांड की त्रासदी के बाद राज्यभर के मेडिकल संस्थानों में सख्ती के दावों के बीच, यहां फायर ब्रिगेड के उपकरणों ने बुरी तरह धोखा दिया। चर्म रोग विभाग में सिमुलेटेड आग बुझाने का प्रयास लीकेज से विफल हो गया, जिससे स्टाफ और मरीजों में दहशत फैल गई। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी कमजोरियां वास्तविक आपदा में सैकड़ों जिंदगियां दांव पर लगा सकती हैं।
ड्रिल का डरावना दृश्य: पानी की धार बनी रिसाव की नदी
शुक्रवार दोपहर चर्म रोग विभाग के एक वार्ड में आग लगने का काल्पनिक सीन रचा गया। फायर ब्रिगेड की टीम सायरन बजाते हुए दौड़ी, लेकिन होसे कनेक्ट करते ही नाटक टूट गया। हाई-प्रेशर पाइपों से पानी की जगह रिसाव शुरू हो गया – जोड़ों से टपकता पानी और छेदों से छिटकती बूंदें आग बुझाने की बजाय फर्श को भिगो रही थीं। जहां तेज धार से धुंए को तितर-बितर करने की उम्मीद थी, वहां जमीनी स्तर पर पानी का पोखर बन गया।
अभ्यास करीब 45 मिनट चला, लेकिन तकनीकी खराबी ने इसे अधर में लटका दिया। अस्पताल के एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “ये तो सिर्फ प्रैक्टिस था, असली आग में क्या हाल होता? मरीजों को निकालने का प्लान भी अधर में लटक गया।” दर्शक स्टाफ और कुछ मरीजों के बीच हंसी-मजाक तो चला, लेकिन चिंता की लकीरें साफ दिखीं। विभागाध्यक्ष डॉ. राजेश शर्मा ने बताया, “मकसद था कर्मचारियों को अलर्ट रखना, लेकिन उपकरणों की यह हालत सबके होश उड़ा गई।”
फायर ब्रिगेड की सफाई: ‘छोटी समस्या, बड़ा खर्च’
फायर ब्रिगेड के डिप्टी स्टेशन ऑफिसर ने घटना को हल्का बताते हुए कहा, “पुराने वाहनों में रिसाव सामान्य है। प्रेशर पर असर नहीं पड़ा, बस सतह पर पानी फैला। हर बार नई सामग्री लगाना बजट से बाहर है।” लेकिन यह दलील विशेषज्ञों को रास नहीं आई। पूर्व फायर सेफ्टी इंस्पेक्टर अशोक व्यास ने चेताया, “मॉक ड्रिल असफलता का मतलब है आपदा में फेलियर। जयपुर जैसा हादसा यहां दोहराया जा सकता है, जहां पुराने होसे ने जानें लीं।”
स्थानीय स्तर पर यह पहली बार नहीं – पिछले साल भी पीबीएम में समान शिकायतें उठी थीं, लेकिन सुधार की गति धीमी रही।
जयपुर त्रासदी के साये में सरकारी वादे: ऑडिट कहां?
जयपुर एसएमएस अग्निकांड (जिसमें 10 से ज्यादा मौतें हुईं) के बाद सरकार ने सभी अस्पतालों में फायर ऑडिट, उपकरण चेकअप और नियमित ड्रिल के आदेश जारी किए थे। पीबीएम, बीकानेर का प्रमुख 700-बेड वाला अस्पताल, जहां रोजाना हजारों मरीज आते हैं, इस लिस्ट में टॉप पर है। फिर भी, ड्रिल ने बेनकाब कर दिया कि इंफ्रास्ट्रक्चर कागजों तक सीमित है।
जिला कलेक्टर नितिन गुप्ता ने शाम को बयान जारी कर कहा, “हम तुरंत जांच पैनल बना रहे हैं। अगले सप्ताह पूरे कैंपस में दोबारा ड्रिल होगी, और लीकेज फिक्स हो जाएगा।” लेकिन डॉक्टर्स एसोसिएशन ने सवाल उठाया, “वादे तो हर बार होते हैं, लेकिन अमल कब? मरीजों की सुरक्षा पहले होनी चाहिए।” राज्य स्वास्थ्य विभाग ने पूरे राजस्थान में 50 से ज्यादा अस्पतालों में ऐसी ड्रिल्स प्लान की हैं, लेकिन पीबीएम की घटना ने सबको झकझोर दिया।
विशेषज्ञ अलार्म: 70% उपकरण खराब, सुधार जरूरी
अग्नि सुरक्षा एक्सपर्ट्स के मुताबिक, राजस्थान के सरकारी हॉस्पिटल्स में 70 फीसदी से ज्यादा फायर गियर आउटडेटेड हैं। राष्ट्रीय फायर प्रोटेक्शन एसोसिएशन के आंकड़ों से प्रेरित होकर, वे कहते हैं कि मॉक ड्रिल ही असली टेस्ट है। पीबीएम जैसे सेंटर में विफलता का मतलब है – सांस लेने वाले वेंटिलेटरों पर मरीजों को आग की लपटों में झुलसना।
सामाजिक कार्यकर्ता रीना जोशी ने कहा, “महिलाओं और बच्चों वाले वार्ड्स में खतरा दोगुना है। सरकार को बजट आवंटित कर तुरंत अपग्रेडेशन शुरू करना चाहिए।” भविष्य में, डिजिटल अलर्ट सिस्टम और ऑटोमेटेड सप्रेसर की सिफारिश हो रही है।
यह घटना सिर्फ बीकानेर नहीं, पूरे प्रदेश के लिए सबक है। क्या अब प्रशासन कागजी खानापूर्ति छोड़कर जमीनी सुधार पर उतरेगा? मरीजों की जिंदगियां दांव पर हैं – समय आ गया है कार्रवाई का।
