सीकर: राजस्थान के सीकर जिले में ग्रामीणों ने एक अनूठे और साहसिक आंदोलन की शुरुआत की है। लक्ष्मणगढ़-धोद धार्मिक कोरिडोर की 75 किलोमीटर लंबी एमडीआर 415 सड़क के मार्ग में बदलाव के विरोध में बठोठ और सांवलोदा पुरोहितान गांवों की सीमा पर सैकड़ों पुरुष, महिलाएं और युवा सड़क पर लेटकर ‘चिपको आंदोलन’ चला रहे हैं। यह आंदोलन ग्रामीणों की धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक पहचान से जुड़े रास्तों को बचाने की मांग को लेकर शुरू किया गया है।
मार्ग बदलाव से ग्रामीणों में आक्रोश
पूर्व पंचायत समिति सदस्य नरेन्द्र बाटड़ ने बताया कि एक वर्ष पहले प्रस्तावित एमडीआर 415 सड़क भढ़ाढ़र, सांवलोदा पुरोहितान, बठोठ, चुड़ौली, फागलवा, नेतड़वास और जीणमाता जैसे गांवों-ढाणियों के धार्मिक स्थलों से होकर गुजरने वाली थी। लेकिन 13 अगस्त के आदेश से इस मार्ग की दिशा बदल दिए जाने से ग्रामीणों में सरकार और प्रशासन के खिलाफ गहरा रोष है। बाटड़ ने कहा, “यह बदलाव ग्रामीणों की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। बठोठ का लोठजी जाट स्मारक, चुड़ौली का बालाजी मंदिर और हरिराम बाबा का मंदिर जैसे पवित्र स्थल इस रास्ते से जुड़े हैं, जिन्हें नजरअंदाज करना अस्वीकार्य है।”
अनसुनी मांगों ने भड़काया आंदोलन
ग्रामीणों ने अपनी मांगों को लेकर कई आक्रोश सभाएं आयोजित कीं और स्थानीय प्रशासन को अवगत कराया, साथ ही सरकार से पूर्व प्रस्तावित मार्ग को यथावत रखने की अपील की। लेकिन प्रशासन और सरकार की ओर से इन मांगों पर ध्यान न दिए जाने से नाराजगी बढ़ी। अब ग्रामीण धार्मिक आस्था स्थलों को सड़क से जोड़ने की मांग को लेकर सड़क पर उतर आए हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो आंदोलन तेज करते हुए सीकर जिला कलेक्ट्रेट और मंत्रियों का घेराव किया जाएगा।
धार्मिक कोरिडोर की अहमियत
ग्रामीणों ने बताया कि सांवलोदा पुरोहितान और बठोठ के बीच का यह रास्ता नेशनल हाईवे-52, शहीद स्मारक सिगडोला छोटा, शहीद स्मारक कुमास जागीर, उपखंड नेछवा रास्ता, बडामर महाराज मंदिर सिगडोलो बड़ा, गाडोदा धाम, सालासर मंदिर रास्ता, फागलवा और जाजोद जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्रों को जोड़ता है। उन्होंने कहा, “यह सड़क इतने रास्तों को एक सूत्र में पिरोती है, और हम किसी भी कीमत पर इसके मार्ग को बदलने नहीं देंगे। जरूरत पड़ी तो किसानों का हथियार ‘जेली दांतली’ भी उठाया जाएगा।”
भविष्य की चेतावनी
ग्रामीणों ने प्रशासन से अपील की कि उनके धैर्य की परीक्षा न ली जाए। उन्होंने साफ किया कि आने वाले दिनों में यदि पूर्व प्रस्तावित गांवों और रास्तों को सड़क परियोजना में शामिल नहीं किया गया, तो आंदोलन और उग्र रूप ले सकता है। यह आंदोलन न केवल सड़क बचाने की लड़ाई है, बल्कि ग्रामीणों की आस्था और पहचान की रक्षा का प्रतीक भी बन गया है।
